7 बुद्धि इतने ऊँचे पर है कि मूर्ख उसे पा नहीं सकता; वह सभा में अपना मुँह खोल नहीं सकता।
8 जो सोच विचार के बुराई करता है, उसको लोग दुष्ट कहते हैं।
9 मूर्खता का विचार भी पाप है, और ठट्ठा करनेवाले से मनुष्य घृणा करते हैं।
10 यदि तू विपत्ति के समय साहस छोड़ दे, तो तेरी शक्ति बहुत कम है।