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ज़बूर 119:130-133 in Urdu

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ज़बूर 119:130-133 in इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

130 तेरी बातों की तशरीह नूर बख़्शती है, वह सादा दिलों को 'अक़्लमन्द बनाती है।
131 मैं खू़ब मुँह खोलकर हाँपता रहा, क्यूँकि मैं तेरे फ़रमान का मुश्ताक़ था।
132 मेरी तरफ़ तवज्जुह कर और मुझ पर रहम फ़रमा, जैसा तेरे नाम से मुहब्बत रखने वालों का हक़ है।
133 अपने कलाम में मेरी रहनुमाई कर, कोई बदकारी मुझ पर तसल्लुत न पाए।
ज़बूर 119 in इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019