3हँसी से खेद उत्तम है, क्योंकि मुँह पर के शोक से मन सुधरता है।
4बुद्धिमानों का मन शोक करनेवालों के घर की ओर लगा रहता है परन्तु मूर्खों का मन आनन्द करनेवालों के घर लगा रहता है।
5मूर्खों के गीत सुनने से बुद्धिमान की घुड़की सुनना उत्तम है।
6क्योंकि मूर्ख की हँसी हाण्डी के नीचे जलते हुए काँटों ही चरचराहट* के समान होती है; यह भी व्यर्थ है।
7निश्चय अंधेर से बुद्धिमान बावला हो जाता है*; और घूस से बुद्धि नाश होती है।
8किसी काम के आरम्भ से उसका अन्त उत्तम है; और धीरजवन्त पुरुष अहंकारी से उत्तम है।
9अपने मन में उतावली से क्रोधित न हो, क्योंकि क्रोध मूर्खों ही के हृदय में रहता है। (याकूब. 1:19)
10यह न कहना, “बीते दिन इनसे क्यों उत्तम थे?” क्योंकि यह तू बुद्धिमानी से नहीं पूछता।