6हाँ चाहे वह दो हजार वर्ष जीवित रहे, और कुछ सुख भोगने न पाए, तो उसे क्या? क्या सब के सब एक ही स्थान में नहीं जाते?
7मनुष्य का सारा परिश्रम उसके पेट के लिये होता है तो भी उसका मन नहीं भरता।
8जो बुद्धिमान है वह मूर्ख से किस बात में बढ़कर है? और कंगाल जो यह जानता है कि इस जीवन में किस प्रकार से चलना चाहिये*, वह भी उससे किस बात में बढ़कर है?
9आँखों से देख लेना मन की चंचलता से उत्तम है: यह भी व्यर्थ और मन का कुढ़ना है।