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पवित्र बाइबिल - लैव्यव्यवस्था - लैव्यव्यवस्था 26

लैव्यव्यवस्था 26:18-42

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18और यदि तुम इन बातों के उपरान्त भी मेरी न सुनो, तो मैं तुम्हारे पापों के कारण तुम्हें सातगुणी ताड़ना और दूँगा,
19और मैं तुम्हारे बल का घमण्ड तोड़ डालूँगा, और तुम्हारे लिये आकाश को मानो लोहे का और भूमि को मानो पीतल की बना दूँगा;
20और तुम्हारा बल अकारथ गँवाया जाएगा, क्योंकि तुम्हारी भूमि अपनी उपज न उपजाएगी, और मैदान के वृक्ष अपने फल न देंगे।
21“यदि तुम मेरे विरुद्ध चलते ही रहो, और मेरा कहना न मानो, तो मैं तुम्हारे पापों के अनुसार तुम्हारे ऊपर और सातगुणा संकट डालूँगा।
22और मैं तुम्हारे बीच वन पशु भेजूँगा, जो तुमको निर्वंश करेंगे, और तुम्हारे घरेलू पशुओं को नाश कर डालेंगे, और तुम्हारी गिनती घटाएँगे, जिससे तुम्हारी सड़कें सूनी पड़ जाएँगी।
23“फिर यदि तुम इन बातों पर भी मेरी ताड़ना से न सुधरो, और मेरे विरुद्ध चलते ही रहो,
24तो मैं भी तुम्हारे विरुद्ध चलूँगा, और तुम्हारे पापों के कारण मैं आप ही तुमको सातगुणा मारूँगा।
25और मैं तुम पर एक ऐसी तलवार चलवाऊँगा, जो वाचा तोड़ने का पूरा-पूरा पलटा लेगी; और जब तुम अपने नगरों में जा जाकर इकट्ठे होंगे तब मैं तुम्हारे बीच मरी फैलाऊँगा, और तुम अपने शत्रुओं के वश में सौंप दिए जाओगे।
26जब मैं तुम्हारे लिये अन्न के आधार को दूर कर डालूँगा, तब दस स्त्रियाँ तुम्हारी रोटी एक ही तंदूर में पकाकर तौल-तौलकर बाँट देंगी; और तुम खाकर भी तृप्त न होंगे।
27“फिर यदि तुम इसके उपरान्त भी मेरी न सुनोगे, और मेरे विरुद्ध चलते ही रहोगे,
28तो मैं अपने न्याय में तुम्हारे विरुद्ध चलूँगा, और तुम्हारे पापों के कारण तुमको सातगुणी ताड़ना और भी दूँगा।
29और तुम को अपने बेटों और बेटियों का माँस खाना पड़ेगा।
30और मैं तुम्हारे पूजा के ऊँचे स्थानों को* ढा दूँगा, और तुम्हारे सूर्य की प्रतिमाएँ तोड़ डालूँगा, और तुम्हारी लोथों को तुम्हारी तोड़ी हुई मूरतों पर फेंक दूँगा; और मेरी आत्मा को तुम से घृणा हो जाएगी।
31और मैं तुम्हारे नगरों को उजाड़ दूँगा, और तुम्हारे पवित्र स्थानों को उजाड़ दूँगा, और तुम्हारा सुखदायक सुगन्ध ग्रहण न करूँगा।
32और मैं तुम्हारे देश को सूना कर दूँगा, और तुम्हारे शत्रु जो उसमें रहते हैं वे इन बातों के कारण चकित होंगे।
33और मैं तुम को जाति-जाति के बीच तितर-बितर करूँगा, और तुम्हारे पीछे-पीछे तलवार खींचे रहूँगा; और तुम्हारा देश सुना हो जाएगा, और तुम्हारे नगर उजाड़ हो जाएँगे।
34“तब जितने दिन वह देश सूना पड़ा रहेगा और तुम अपने शत्रुओं के देश में रहोगे उतने दिन वह अपने विश्रामकालों को मानता रहेगा। तब ही वह देश विश्राम पाएगा, अर्थात् अपने विश्रामकालों को मानता रहेगा।
35जितने दिन वह सूना पड़ा रहेगा उतने दिन उसको विश्राम रहेगा, अर्थात् जो विश्राम उसको तुम्हारे वहाँ बसे रहने के समय तुम्हारे विश्रामकालों में न मिला होगा वह उसको तब मिलेगा।
36और तुम में से जो बचा रहेंगे और अपने शत्रुओं के देश में होंगे उनके हृदय में मैं कायरता उपजाऊँगा; और वे पत्ते के खड़कने से भी भाग जाएँगे, और वे ऐसे भागेंगे जैसे कोई तलवार से भागे, और किसी के बिना पीछा किए भी वे गिर पड़ेंगे।
37जब कोई पीछा करनेवाला न हो तब भी मानो तलवार के भय से वे एक दूसरे से ठोकर खाकर गिरते जाएँगे, और तुमको अपने शत्रुओं के सामने ठहरने की कुछ शक्ति न होगी।
38तब तुम जाति-जाति के बीच पहुँचकर नाश हो जाओगे, और तुम्हारे शत्रुओं की भूमि तुमको खा जाएगी।
39और तुम में से जो बचे रहेंगे वे अपने शत्रुओं के देशों में अपने अधर्म के कारण गल जाएँगे; और अपने पुरखाओं के अधर्म के कामों के कारण भी वे उन्हीं के समान गल जाएँगे।
40“पर यदि वे अपने और अपने पितरों के अधर्म को मान लेंगे, अर्थात् उस विश्वासघात को जो उन्होंने मेरे विरुद्ध किया, और यह भी मान लेंगे, कि हम यहोवा के विरुद्ध चले थे,
41इसी कारण वह हमारे विरुद्ध होकर हमें शत्रुओं के देश में ले आया है। यदि उस समय उनका खतनारहित हृदय* दब जाएगा और वे उस समय अपने अधर्म के दण्ड को अंगीकार करेंगे; (प्रेरि. 7:51)
42तब जो वाचा मैंने याकूब के संग बाँधी थी उसको मैं स्मरण करूँगा, और जो वाचा मैंने इसहाक से और जो वाचा मैंने अब्राहम से बाँधी थी उनको भी स्मरण करूँगा, और इस देश को भी मैं स्मरण करूँगा।

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