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पवित्र बाइबिल - लूका - लूका 1

लूका 1:31-77

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31और देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्‍पन्‍न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना। (यशा. 7:14)
32वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्‍वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उसको देगा। (भज. 132:11, यशा. 9:6-7)
33और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा।” (2 शमू. 7:12,16, इब्रा. 1:8, दानि. 2:44)
34मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, “यह कैसे होगा? मैं तो पुरुष को जानती ही नहीं।”
35स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया, “पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ्य तुझ पर छाया करेगी; इसलिए वह पवित्र* जो उत्‍पन्‍न होनेवाला है, परमेश्‍वर का पुत्र कहलाएगा।
36और देख, और तेरी कुटुम्बिनी एलीशिबा के भी बुढ़ापे में पुत्र होनेवाला है, यह उसका, जो बाँझ कहलाती थी छठवाँ महीना है।
37परमेश्‍वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।” (मत्ती 19:26, यिर्म. 32:27)
38मरियम ने कहा, “देख, मैं प्रभु की दासी हूँ, तेरे वचन के अनुसार मेरे साथ ऐसा हो।” तब स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
39उन दिनों में मरियम उठकर शीघ्र ही पहाड़ी देश में यहूदा के एक नगर को गई।
40और जकर्याह के घर में जाकर एलीशिबा को नमस्कार किया।
41जैसे ही एलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, वैसे ही बच्चा उसके पेट में उछला, और एलीशिबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गई।
42और उसने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, “तू स्त्रियों में धन्य है, और तेरे पेट का फल धन्य है!
43और यह अनुग्रह मुझे कहाँ से हुआ, कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई?
44और देख जैसे ही तेरे नमस्कार का शब्द मेरे कानों में पड़ा वैसे ही बच्चा मेरे पेट में आनन्द से उछल पड़ा।
45और धन्य है, वह जिस ने विश्वास किया कि जो बातें प्रभु की ओर से उससे कही गई, वे पूरी होंगी।”
46तब मरियम ने कहा, “मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है।
47और मेरी आत्मा मेरे उद्धार करनेवाले परमेश्‍वर से आनन्दित हुई। (1 शमू. 2:1)
48क्योंकि उसने अपनी दासी की दीनता पर दृष्टि की है; इसलिए देखो, अब से सब युग-युग के लोग मुझे धन्य कहेंगे। (1 शमू. 1:11, लूका 1:42, मला. 3:12)
49क्योंकि उस शक्तिमान ने मेरे लिये बड़े- बड़े काम किए हैं, और उसका नाम पवित्र है।
50और उसकी दया उन पर, जो उससे डरते हैं, पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है। (भज. 103:17)
51उसने अपना भुजबल दिखाया, और जो अपने मन में घमण्ड करते थे, उन्हें तितर-बितर किया। (2 शमू. 22:28, भज. 89:10)
52उसने शासकों को सिंहासनों से गिरा दिया; और दीनों को ऊँचा किया। (1 शमू. 2:7, अय्यू. 5:11, भज. 113:7-8)
53उसने भूखों को अच्छी वस्तुओं से तृप्त किया, और धनवानों को खाली हाथ निकाल दिया। (1 शमू. 2:5, भज. 107:9)
54उसने अपने सेवक इस्राएल को सम्भाल लिया कि अपनी उस दया को स्मरण करे, (भज. 98:3, यशा. 41:8-9)
55जो अब्राहम और उसके वंश पर सदा रहेगी, जैसा उसने हमारे पूर्वजों से कहा था।” (उत्प. 22:17, मीका 7:20)
56मरियम लगभग तीन महीने उसके साथ रहकर अपने घर लौट गई।
57तब एलीशिबा के जनने का समय पूरा हुआ, और वह पुत्र जनी।
58उसके पड़ोसियों और कुटुम्बियों ने यह सुन कर, कि प्रभु ने उस पर बड़ी दया की है, उसके साथ आनन्दित हुए।
59और ऐसा हुआ कि आठवें दिन वे बालक का खतना करने आए और उसका नाम उसके पिता के नाम पर जकर्याह रखने लगे। (उत्प. 17:12, लैव्य. 12:3)
60और उसकी माता ने उत्तर दिया, “नहीं; वरन् उसका नाम यूहन्ना रखा जाए।”
61और उन्होंने उससे कहा, “तेरे कुटुम्ब में किसी का यह नाम नहीं।”
62तब उन्होंने उसके पिता से संकेत करके पूछा कि तू उसका नाम क्या रखना चाहता है?
63और उसने लिखने की पट्टी मंगाकर लिख दिया, “उसका नाम यूहन्ना है,” और सभी ने अचम्भा किया।
64तब उसका मुँह और जीभ तुरन्त खुल गई; और वह बोलने और परमेश्‍वर की स्तुति करने लगा।
65और उसके आस-पास के सब रहनेवालों पर भय छा गया; और उन सब बातों की चर्चा यहूदिया के सारे पहाड़ी देश में फैल गई।
66और सब सुननेवालों ने अपने-अपने मन में विचार करके कहा, “यह बालक कैसा होगा?” क्योंकि प्रभु का हाथ उसके साथ था।
67और उसका पिता जकर्याह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गया, और भविष्यद्वाणी करने लगा।
68“प्रभु इस्राएल का परमेश्‍वर धन्य हो, कि उसने अपने लोगों पर दृष्टि की और उनका छुटकारा किया है, (भज. 111:9, भज. 41:13)
69और अपने सेवक दाऊद के घराने में हमारे लिये एक उद्धार का सींग* निकाला, (भज. 132:17, यिर्म. 30:9)
70जैसे उसने अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा जो जगत के आदि से होते आए हैं, कहा था,
71अर्थात् हमारे शत्रुओं से, और हमारे सब बैरियों के हाथ से हमारा उद्धार किया है; (भज. 106:10)
72कि हमारे पूर्वजों पर दया करके अपनी पवित्र वाचा का स्मरण करे,
73और वह शपथ जो उसने हमारे पिता अब्राहम से खाई थी, (उत्प. 17:7, भज. 105:8-9)
74कि वह हमें यह देगा, कि हम अपने शत्रुओं के हाथ से छूटकर,
75उसके सामने पवित्रता और धार्मिकता से जीवन भर निडर रहकर उसकी सेवा करते रहें।
76और तू हे बालक, परमप्रधान का भविष्यद्वक्ता कहलाएगा*, क्योंकि तू प्रभु के मार्ग तैयार करने के लिये उसके आगे-आगे चलेगा, (मला. 3:1, यशा. 40:3)
77कि उसके लोगों को उद्धार का ज्ञान दे, जो उनके पापों की क्षमा से प्राप्त होता है।

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