7और हम बहुत दिनों तक आहिस्ता आहिस्ता चलकर मुश्किल से कनिदुस शहर के सामने पहुँचे तो इसलिए कि हवा हम को आगे बढ़ने न देती थी सलमूने के सामने से हो कर करेते टापू की आड़ में चले।
8और बमुश्किल उसके किनारे किनारे चलकर हसीन — बन्दर नाम एक मक़ाम में पहुँचे जिस से लसया शहर नज़दीक था।
9जब बहुत अरसा गुज़र गया और जहाज़ का सफ़र इसलिए ख़तरनाक हो गया कि रोज़ा का दिन गुज़र चुका था। तो पौलुस ने उन्हें ये कह कर नसीहत की।
10कि ऐ साहिबो। मुझे मालूम होता है, कि इस सफ़र में तकलीफ़ और बहुत नुक़्सान होगा, न सिर्फ़ माल और जहाज़ का बल्कि हमारी जानों का भी।