36यह क्या बात है जो उसने कही, कि ‘तुम मुझे ढूँढ़ोगे, परन्तु न पाओगे: और जहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते’?”
37फिर पर्व के अन्तिम दिन, जो मुख्य दिन है, यीशु खड़ा हुआ और पुकारकर कहा, “यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पीए। (यशा. 55:1)
38जो मुझ पर विश्वास करेगा*, जैसा पवित्रशास्त्र में आया है, ‘उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगी’।”
39उसने यह वचन उस आत्मा के विषय में कहा, जिसे उस पर विश्वास करनेवाले पाने पर थे; क्योंकि आत्मा अब तक न उतरा था, क्योंकि यीशु अब तक अपनी महिमा को न पहुँचा था। (यशा. 44:3)
40तब भीड़ में से किसी-किसी ने ये बातें सुन कर कहा, “सचमुच यही वह भविष्यद्वक्ता है।” (मत्ती 21:11)
41औरों ने कहा, “यह मसीह है,” परन्तु किसी ने कहा, “क्यों? क्या मसीह गलील से आएगा?
42क्या पवित्रशास्त्र में नहीं लिखा कि मसीह दाऊद के वंश से और बैतलहम गाँव से आएगा, जहाँ दाऊद रहता था?” (यशा. 11:1, मीका 5:2)
43अतः उसके कारण लोगों में फूट पड़ी।
44उनमें से कितने उसे पकड़ना चाहते थे, परन्तु किसी ने उस पर हाथ न डाला।
45तब सिपाही प्रधान याजकों और फरीसियों के पास आए, और उन्होंने उनसे कहा, “तुम उसे क्यों नहीं लाए?”
46सिपाहियों ने उत्तर दिया, “किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें न की।”
47फरीसियों ने उनको उत्तर दिया, “क्या तुम भी भरमाए गए हो?
48क्या शासकों या फरीसियों में से किसी ने भी उस पर विश्वास किया है?
49परन्तु ये लोग जो व्यवस्था नहीं जानते, श्रापित हैं।”
50नीकुदेमुस ने, (जो पहले उसके पास आया था और उनमें से एक था), उनसे कहा,