2क्या ऊँच, क्या नीच क्या धनी, क्या दरिद्र, कान लगाओ!
3मेरे मुँह से बुद्धि की बातें निकलेंगी; और मेरे हृदय की बातें समझ की होंगी।
4मैं नीतिवचन की ओर अपना कान लगाऊँगा, मैं वीणा बजाते हुए अपनी गुप्त बात प्रकाशित करूँगा।
5विपत्ति के दिनों में मैं क्यों डरूँ जब अधर्म मुझे आ घेरे?