17तब उन्होंने उन पर हाथ रखे और उन्होंने पवित्र आत्मा पाया।
18जब शमौन ने देखा कि प्रेरितों के हाथ रखने से पवित्र आत्मा दिया जाता है, तो उनके पास रुपये लाकर कहा,
19“यह शक्ति मुझे भी दो, कि जिस किसी पर हाथ रखूँ, वह पवित्र आत्मा पाए।”
20पतरस ने उससे कहा, “तेरे रुपये तेरे साथ नाश हों, क्योंकि तूने परमेश्वर का दान रुपयों से मोल लेने का विचार किया।
21इस बात में न तेरा हिस्सा है, न भाग; क्योंकि तेरा मन परमेश्वर के आगे सीधा नहीं। (भज. 78:37)
22इसलिए अपनी इस बुराई से मन फिराकर प्रभु से प्रार्थना कर, सम्भव है तेरे मन का विचार क्षमा किया जाए।
23क्योंकि मैं देखता हूँ, कि तू पित्त की कड़वाहट और अधर्म के बन्धन में पड़ा है।” (व्य. 29:18, विला. 3:15)
24शमौन ने उत्तर दिया, “तुम मेरे लिये प्रभु से प्रार्थना करो कि जो बातें तुम ने कहीं, उनमें से कोई मुझ पर न आ पड़े।”
25अतः पतरस और यूहन्ना गवाही देकर और प्रभु का वचन सुनाकर, यरूशलेम को लौट गए, और सामरियों के बहुत से गाँवों में सुसमाचार सुनाते गए।
26फिर प्रभु के एक स्वर्गदूत ने फिलिप्पुस से कहा, “उठकर दक्षिण की ओर उस मार्ग पर जा, जो यरूशलेम से गाज़ा को जाता है। यह रेगिस्तानी मार्ग है।
27वह उठकर चल दिया, और तब, कूश देश का एक मनुष्य आ रहा था, जो खोजा* और कूशियों की रानी कन्दाके का मंत्री और खजांची था, और आराधना करने को यरूशलेम आया था।
28और वह अपने रथ पर बैठा हुआ था, और यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक पढ़ता हुआ लौटा जा रहा था।
29तब पवित्र आत्मा ने फिलिप्पुस से कहा, “निकट जाकर इस रथ के साथ हो ले।”
30फिलिप्पुस उसकी ओर दौड़ा और उसे यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक पढ़ते हुए सुना, और पूछा, “तू जो पढ़ रहा है क्या उसे समझता भी है?”
31उसने कहा, “जब तक कोई मुझे न समझाए तो मैं कैसे समझूँ?” और उसने फिलिप्पुस से विनती की, कि चढ़कर उसके पास बैठे।
32पवित्रशास्त्र का जो अध्याय वह पढ़ रहा था, वह यह था : “वह भेड़ के समान वध होने को पहुँचाया गया, और जैसा मेम्ना अपने ऊन कतरनेवालों के सामने चुपचाप रहता है, वैसे ही उसने भी अपना मुँह न खोला,