14उन्होंने प्रधान याजकों और प्राचीनों के पास आकर कहा, “हमने यह ठाना है कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें, तब तक यदि कुछ भी खाएँ, तो हम पर धिक्कार है।
15इसलिए अब महासभा समेत सैन्य-दल के सरदार को समझाओ, कि उसे तुम्हारे पास ले आए, मानो कि तुम उसके विषय में और भी ठीक से जाँच करना चाहते हो, और हम उसके पहुँचने से पहले ही उसे मार डालने के लिये तैयार रहेंगे।”
16और पौलुस के भांजे ने सुना कि वे उसकी घात में हैं, तो गढ़ में जाकर पौलुस को सन्देश दिया।
17पौलुस ने सूबेदारों में से एक को अपने पास बुलाकर कहा, “इस जवान को सैन्य-दल के सरदार के पास ले जाओ, यह उससे कुछ कहना चाहता है।”
18अतः उसने उसको सैन्य-दल के सरदार के पास ले जाकर कहा, “बन्दी पौलुस ने मुझे बुलाकर विनती की, कि यह जवान सैन्य-दल के सरदार से कुछ कहना चाहता है; इसे उसके पास ले जा।”
19सैन्य-दल के सरदार ने उसका हाथ पकड़कर, और उसे अलग ले जाकर पूछा, “तू मुझसे क्या कहना चाहता है?”
20उसने कहा, “यहूदियों ने एका किया है, कि तुझ से विनती करें कि कल पौलुस को महासभा में लाए, मानो तू और ठीक से उसकी जाँच करना चाहता है।
21परन्तु उनकी मत मानना, क्योंकि उनमें से चालीस के ऊपर मनुष्य उसकी घात में हैं, जिन्होंने यह ठान लिया है कि जब तक वे पौलुस को मार न डालें, तब तक न खाएँगे और न पीएँगे, और अब वे तैयार हैं और तेरे वचन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।”
22तब सैन्य-दल के सरदार ने जवान को यह निर्देश देकर विदा किया, “किसी से न कहना कि तूने मुझ को ये बातें बताई हैं।”