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पवित्र बाइबिल - प्रेरितों के काम - प्रेरितों के काम 10

प्रेरितों के काम 10:8-37

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8और उन्हें सब बातें बताकर याफा को भेजा।
9दूसरे दिन जब वे चलते-चलते नगर के पास पहुँचे, तो दोपहर के निकट पतरस छत पर प्रार्थना करने चढ़ा।
10उसे भूख लगी और कुछ खाना चाहता था, परन्तु जब वे तैयार कर रहे थे तो वह बेसुध हो गया।
11और उसने देखा, कि आकाश खुल गया; और एक बड़ी चादर, पात्र के समान चारों कोनों से लटकाया हुआ, पृथ्वी की ओर उतर रहा है।
12जिसमें पृथ्वी के सब प्रकार के चौपाए और रेंगनेवाले जन्तु और आकाश के पक्षी थे।
13और उसे एक ऐसी वाणी सुनाई दी, “हे पतरस उठ, मार और खा।”
14परन्तु पतरस ने कहा, “नहीं प्रभु, कदापि नहीं; क्योंकि मैंने कभी कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु नहीं खाई है।” (लैव्य. 11:1-47, यहे. 4:14)
15फिर दूसरी बार उसे वाणी सुनाई दी, “जो कुछ परमेश्‍वर ने शुद्ध ठहराया है*, उसे तू अशुद्ध मत कह।”
16तीन बार ऐसा ही हुआ; तब तुरन्त वह चादर आकाश पर उठा लिया गया।
17जब पतरस अपने मन में दुविधा में था, कि यह दर्शन जो मैंने देखा क्या है, तब वे मनुष्य जिन्हें कुरनेलियुस ने भेजा था, शमौन के घर का पता लगाकर द्वार पर आ खड़े हुए।
18और पुकारकर पूछने लगे, “क्या शमौन जो पतरस कहलाता है, यहाँ पर अतिथि है?”
19पतरस जो उस दर्शन पर सोच ही रहा था, कि आत्मा ने उससे कहा, “देख, तीन मनुष्य तुझे खोज रहे हैं।
20अतः उठकर नीचे जा, और निःसंकोच उनके साथ हो ले; क्योंकि मैंने ही उन्हें भेजा है।”
21तब पतरस ने नीचे उतरकर उन मनुष्यों से कहा, “देखो, जिसको तुम खोज रहे हो, वह मैं ही हूँ; तुम्हारे आने का क्या कारण है?”
22उन्होंने कहा, “कुरनेलियुस सूबेदार जो धर्मी और परमेश्‍वर से डरनेवाला और सारी यहूदी जाति में सुनाम मनुष्य है, उसने एक पवित्र स्वर्गदूत से यह निर्देश पाया है, कि तुझे अपने घर बुलाकर तुझ से उपदेश सुने।
23तब उसने उन्हें भीतर बुलाकर उनको रहने की जगह दी। और दूसरे दिन, वह उनके साथ गया; और याफा के भाइयों में से कुछ उसके साथ हो लिए।
24दूसरे दिन वे कैसरिया में पहुँचे, और कुरनेलियुस अपने कुटुम्बियों और प्रिय मित्रों को इकट्ठे करके उनकी प्रतीक्षा कर रहा था।
25जब पतरस भीतर आ रहा था, तो कुरनेलियुस ने उससे भेंट की, और उसके पाँवों पर गिरकर उसे प्रणाम किया।
26परन्तु पतरस ने उसे उठाकर कहा, “खड़ा हो, मैं भी तो मनुष्य ही हूँ।”
27और उसके साथ बातचीत करता हुआ भीतर गया, और बहुत से लोगों को इकट्ठे देखकर
28उनसे कहा, “तुम जानते हो, कि अन्यजाति की संगति करना या उसके यहाँ जाना यहूदी के लिये अधर्म है, परन्तु परमेश्‍वर ने मुझे बताया है कि किसी मनुष्य को अपवित्र या अशुद्ध न कहूँ।
29इसलिए मैं जब बुलाया गया तो बिना कुछ कहे चला आया। अब मैं पूछता हूँ कि मुझे किस काम के लिये बुलाया गया है?”
30कुरनेलियुस ने कहा, “चार दिन पहले, इसी समय, मैं अपने घर में तीसरे पहर को प्रार्थना कर रहा था; कि एक पुरुष चमकीला वस्त्र पहने हुए, मेरे सामने आ खड़ा हुआ।
31और कहने लगा, ‘हे कुरनेलियुस, तेरी प्रार्थना सुन ली गई है और तेरे दान परमेश्‍वर के सामने स्मरण किए गए हैं।
32इसलिए किसी को याफा भेजकर शमौन को जो पतरस कहलाता है, बुला। वह समुद्र के किनारे शमौन जो, चमड़े का धन्धा करनेवाले के घर में अतिथि है।
33तब मैंने तुरन्त तेरे पास लोग भेजे, और तूने भला किया जो आ गया। अब हम सब यहाँ परमेश्‍वर के सामने हैं, ताकि जो कुछ परमेश्‍वर ने तुझ से कहा है उसे सुनें।”
34तब पतरस ने मुँह खोलकर कहा, अब मुझे निश्चय हुआ, कि परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता, (व्य. 10:17, 2 इति. 19:7)
35वरन् हर जाति में जो उससे डरता और धार्मिक काम करता है, वह उसे भाता है।
36जो वचन उसने इस्राएलियों के पास भेजा, जब कि उसने यीशु मसीह के द्वारा जो सब का प्रभु है, शान्ति का सुसमाचार सुनाया। (भज. 107:20, भज. 147:18, यशा. 52:7, नहू. 1:15)
37वह वचन तुम जानते हो, जो यूहन्ना के बपतिस्मा के प्रचार के बाद गलील से आरम्भ होकर सारे यहूदिया में फैल गया:

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