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पवित्र बाइबिल - नीतिवचन - नीतिवचन 8

नीतिवचन 8:7-26

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7क्योंकि मुझसे सच्चाई की बातों का वर्णन होगा; दुष्टता की बातों से मुझ को घृणा आती है।
8मेरे मुँह की सब बातें धर्म की होती हैं, उनमें से कोई टेढ़ी या उलट फेर की बात नहीं निकलती है।
9समझवाले के लिये वे सब सहज, और ज्ञान प्राप्त करनेवालों के लिये अति सीधी हैं।
10चाँदी नहीं, मेरी शिक्षा ही को चुन लो, और उत्तम कुन्दन से बढ़कर ज्ञान को ग्रहण करो।
11क्योंकि बुद्धि, बहुमूल्य रत्नों से भी अच्छी है, और सारी मनभावनी वस्तुओं में कोई भी उसके तुल्य नहीं है।
12मैं जो बुद्धि हूँ, और मैं चतुराई में वास करती हूँ*, और ज्ञान और विवेक को प्राप्त करती हूँ।
13यहोवा का भय मानना बुराई से बैर रखना है। घमण्ड और अहंकार, बुरी चाल से, और उलट फेर की बात से मैं बैर रखती हूँ।
14उत्तम युक्ति, और खरी बुद्धि मेरी ही है, मुझ में समझ है, और पराक्रम भी मेरा है।
15मेरे ही द्वारा राजा राज्य करते हैं, और अधिकारी धर्म से शासन करते हैं; (रोमियों. 13:1)
16मेरे ही द्वारा राजा, हाकिम और पृथ्वी के सब न्यायी शासन करते हैं।
17जो मुझसे प्रेम रखते हैं, उनसे मैं भी प्रेम रखती हूँ, और जो मुझ को यत्न से तड़के उठकर खोजते हैं, वे मुझे पाते हैं।
18धन और प्रतिष्ठा, शाश्‍वत धन और धार्मिकता मेरे पास हैं।
19मेरा फल शुद्ध सोने से, वरन् कुन्दन से भी उत्तम है, और मेरी उपज उत्तम चाँदी से अच्छी है।
20मैं धर्म के मार्ग में, और न्याय की डगरों के बीच में चलती हूँ,
21जिससे मैं अपने प्रेमियों को धन-सम्‍पत्ति का भागी करूँ, और उनके भण्डारों को भर दूँ।
22“यहोवा ने मुझे काम करने के आरम्भ में, वरन् अपने प्राचीनकाल के कामों से भी पहले उत्‍पन्‍न किया*।
23मैं सदा से वरन् आदि ही से पृथ्वी की सृष्टि से पहले ही से ठहराई गई हूँ।
24जब न तो गहरा सागर था, और न जल के सोते थे, तब ही से मैं उत्‍पन्‍न हुई।
25जब पहाड़ और पहाड़ियाँ स्थिर न की गई थीं, तब ही से मैं उत्‍पन्‍न हुई। (यूह. 1:1,2, यूह. 17:24, कुलुस्सियों. 1:17)
26जब यहोवा ने न तो पृथ्वी और न मैदान, न जगत की धूलि के परमाणु बनाए थे, इनसे पहले मैं उत्‍पन्‍न हुई।

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