1क्या बुद्धि नहीं पुकारती है? क्या समझ ऊँचे शब्द से नहीं बोलती है?
2बुद्धि तो मार्ग के ऊँचे स्थानों पर, और चौराहों में खड़ी होती है*;
3फाटकों के पास नगर के पैठाव में, और द्वारों ही में वह ऊँचे स्वर से कहती है,
4“हे लोगों, मैं तुम को पुकारती हूँ, और मेरी बातें सब मनुष्यों के लिये हैं।
5हे भोलों, चतुराई सीखो; और हे मूर्खों, अपने मन में समझ लो