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पवित्र बाइबिल - नीतिवचन - नीतिवचन 6

नीतिवचन 6:20-33

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20हे मेरे पुत्र, अपने पिता की आज्ञा को मान, और अपनी माता की शिक्षा को न तज।
21उनको अपने हृदय में सदा गाँठ बाँधे रख; और अपने गले का हार बना ले।
22वह तेरे चलने में तेरी अगुआई, और सोते समय तेरी रक्षा, और जागते समय तुझे शिक्षा देगी।
23आज्ञा तो दीपक है और शिक्षा ज्योति, और अनुशासन के लिए दी जानेवाली डाँट जीवन का मार्ग है,
24वे तुझको अनैतिक स्त्री* से और व्यभिचारिणी की चिकनी चुपड़ी बातों से बचाएगी।
25उसकी सुन्दरता देखकर अपने मन में उसकी अभिलाषा न कर; वह तुझे अपने कटाक्ष से फँसाने न पाए;
26क्योंकि वेश्यागमन के कारण मनुष्य रोटी के टुकड़ों का भिखारी हो जाता है, परन्तु व्यभिचारिणी अनमोल जीवन का अहेर कर लेती है।
27क्या हो सकता है कि कोई अपनी छाती पर आग रख ले; और उसके कपड़े न जलें?
28क्या हो सकता है कि कोई अंगारे पर चले, और उसके पाँव न झुलसें?
29जो पराई स्त्री के पास जाता है, उसकी दशा ऐसी है; वरन् जो कोई उसको छूएगा वह दण्ड से न बचेगा।
30जो चोर भूख के मारे अपना पेट भरने के लिये चोरी करे, उसको तो लोग तुच्छ नहीं जानते;
31फिर भी यदि वह पकड़ा जाए, तो उसको सातगुणा भर देना पड़ेगा; वरन् अपने घर का सारा धन देना पड़ेगा।
32जो परस्त्रीगमन करता है वह निरा निर्बुद्ध है; जो ऐसा करता है, वह अपने प्राण को नाश करता है।
33उसको घायल और अपमानित होना पड़ेगा, और उसकी नामधराई कभी न मिटेगी।

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