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पवित्र बाइबिल - नीतिवचन - नीतिवचन 31

नीतिवचन 31:10-24

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10भली पत्‍नी कौन पा सकता है? क्योंकि उसका मूल्य मूँगों से भी बहुत अधिक है।
11उसके पति के मन में उसके प्रति विश्वास है, और उसे लाभ की घटी नहीं होती।
12वह अपने जीवन के सारे दिनों में उससे बुरा नहीं, वरन् भला ही व्यवहार करती है।
13वह ऊन और सन ढूँढ़ ढूँढ़कर, अपने हाथों से प्रसन्नता के साथ काम करती है।
14वह व्यापार के जहाजों के समान अपनी भोजनवस्तुएँ दूर से मँगवाती है।
15वह रात ही को उठ बैठती है, और अपने घराने को भोजन खिलाती है और अपनी दासियों को अलग-अलग काम देती है।
16वह किसी खेत के विषय में सोच विचार करती है और उसे मोल ले लेती है; और अपने परिश्रम के फल से दाख की बारी लगाती है।
17वह अपनी कटि को बल के फेंटे से कसती है, और अपनी बाहों को दृढ़ बनाती है। (लूका 12:35)
18वह परख लेती है कि मेरा व्यापार लाभदायक है। रात को उसका दिया नहीं बुझता।
19वह अटेरन में हाथ लगाती है, और चरखा पकड़ती है।
20वह दीन के लिये मुट्ठी खोलती है, और दरिद्र को संभालने के लिए हाथ बढ़ाती है।
21वह अपने घराने के लिये हिम से नहीं डरती, क्योंकि उसके घर के सब लोग लाल कपड़े पहनते हैं।
22वह तकिये बना लेती है; उसके वस्त्र सूक्ष्म सन और बैंगनी रंग के होते हैं।
23जब उसका पति सभा में देश के पुरनियों के संग बैठता है, तब उसका सम्मान होता है।
24वह सन के वस्त्र बनाकर बेचती है; और व्यापारी को कमरबन्द देती है।

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