9मूर्ख के सामने न बोलना, नहीं तो वह तेरे बुद्धि के वचनों को तुच्छ जानेगा।
10पुरानी सीमाओं को न बढ़ाना, और न अनाथों के खेत में घुसना;
11क्योंकि उनका छुड़ानेवाला सामर्थी है; उनका मुकद्दमा तेरे संग वही लड़ेगा।
12अपना हृदय शिक्षा की ओर, और अपने कान ज्ञान की बातों की ओर लगाना।
13लड़के की ताड़ना न छोड़ना*; क्योंकि यदि तू उसको छड़ी से मारे, तो वह न मरेगा।
14तू उसको छड़ी से मारकर उसका प्राण अधोलोक से बचाएगा।
15हे मेरे पुत्र, यदि तू बुद्धिमान हो, तो मेरा ही मन आनन्दित होगा।
16और जब तू सीधी बातें बोले, तब मेरा मन प्रसन्न होगा।
17तू पापियों के विषय मन में डाह न करना, दिन भर यहोवा का भय मानते रहना।
18क्योंकि अन्त में फल होगा, और तेरी आशा न टूटेगी।
19हे मेरे पुत्र, तू सुनकर बुद्धिमान हो, और अपना मन सुमार्ग में सीधा चला।
20दाखमधु के पीनेवालों में न होना, न माँस के अधिक खानेवालों की संगति करना;
21क्योंकि पियक्कड़ और पेटू दरिद्र हो जाएँगे, और उनका क्रोध उन्हें चिथड़े पहनाएगी।
22अपने जन्मानेवाले पिता की सुनना, और जब तेरी माता बुढ़िया हो जाए, तब भी उसे तुच्छ न जानना।
23सच्चाई को मोल लेना, बेचना नहीं; और बुद्धि और शिक्षा और समझ को भी मोल लेना।
24धर्मी का पिता बहुत मगन होता है; और बुद्धिमान का जन्मानेवाला उसके कारण आनन्दित होता है।
25तेरे कारण माता-पिता आनन्दित और तेरी जननी मगन होए।
26हे मेरे पुत्र, अपना मन मेरी ओर लगा, और तेरी दृष्टि मेरे चालचलन पर लगी रहे।