17कान लगाकर बुद्धिमानों के वचन सुन, और मेरी ज्ञान की बातों की ओर मन लगा;
18यदि तू उसको अपने मन में रखे, और वे सब तेरे मुँह से निकला भी करें, तो यह मनभावनी बात होगी।
19मैंने आज इसलिए ये बातें तुझको बताई है, कि तेरा भरोसा यहोवा पर हो।
20मैं बहुत दिनों से तेरे हित के उपदेश और ज्ञान की बातें लिखता आया हूँ,
21कि मैं तुझे सत्य वचनों का निश्चय करा दूँ, जिससे जो तुझे काम में लगाएँ, उनको सच्चा उत्तर दे सके।
22कंगाल पर इस कारण अंधेर न करना* कि वह कंगाल है, और न दीन जन को कचहरी में पीसना;
23क्योंकि यहोवा उनका मुकद्दमा लड़ेगा, और जो लोग उनका धन हर लेते हैं, उनका प्राण भी वह हर लेगा।
24क्रोधी मनुष्य का मित्र न होना, और झट क्रोध करनेवाले के संग न चलना,
25कहीं ऐसा न हो कि तू उसकी चाल सीखे, और तेरा प्राण फंदे में फंस जाए।
26जो लोग हाथ पर हाथ मारते हैं, और कर्जदार के उत्तरदायी होते हैं, उनमें तू न होना।
27यदि तेरे पास भुगतान करने के साधन की कमी हो, तो क्यों न साहूकार तेरे नीचे से खाट खींच ले जाए?
28जो सीमा तेरे पुरखाओं ने बाँधी हो, उस पुरानी सीमा को न बढ़ाना।
29यदि तू ऐसा पुरुष देखे जो काम-काज में निपुण हो, तो वह राजाओं के सम्मुख खड़ा होगा; छोटे लोगों के सम्मुख नहीं।