Text copied!
CopyCompare
पवित्र बाइबिल - नीतिवचन - नीतिवचन 20

नीतिवचन 20:8-29

Help us?
Click on verse(s) to share them!
8राजा जो न्याय के सिंहासन पर बैठा करता है, वह अपनी दृष्टि ही से सब बुराई को छाँट लेता है।
9कौन कह सकता है कि मैंने अपने हृदय को पवित्र किया; अथवा मैं पाप से शुद्ध हुआ हूँ?
10घटते-बढ़ते बटखरे और घटते-बढ़ते नपुए इन दोनों से यहोवा घृणा करता है।
11लड़का भी अपने कामों से पहचाना जाता है, कि उसका काम पवित्र और सीधा है, या नहीं।
12सुनने के लिये कान और देखने के लिये जो *आँखें हैं, उन दोनों को यहोवा ने बनाया है।
13नींद से प्रीति न रख, नहीं तो दरिद्र हो जाएगा; आँखें खोल* तब तू रोटी से तृप्त होगा।
14मोल लेने के समय ग्राहक, “अच्छी नहीं, अच्छी नहीं,” कहता है; परन्तु चले जाने पर बढ़ाई करता है।
15सोना और बहुत से बहुमूल्य रत्न तो हैं; परन्तु ज्ञान की बातें* अनमोल मणि ठहरी हैं।
16किसी अनजान के लिए जमानत देनेवाले के वस्त्र ले और पराए के प्रति जो उत्तरदायी हुआ है उससे बंधक की वस्तु ले रख।
17छल-कपट से प्राप्त रोटी मनुष्य को मीठी तो लगती है, परन्तु बाद में उसका मुँह कंकड़ों से भर जाता है।
18सब कल्पनाएँ सम्मति ही से स्थिर होती हैं; और युक्ति के साथ युद्ध करना चाहिये।
19जो लुतराई करता फिरता है वह भेद प्रगट करता है; इसलिए बकवादी से मेल जोल न रखना।
20जो अपने माता-पिता को कोसता, उसका दिया बुझ जाता, और घोर अंधकार हो जाता है।
21जो भाग पहले उतावली से मिलता है, अन्त में उस पर आशीष नहीं होती।
22मत कह, “मैं बुराई का बदला लूँगा;” वरन् यहोवा की बाट जोहता रह, वह तुझको छुड़ाएगा। (1 थिस्सलुनीकियों. 5:15)
23घटते बढ़ते बटखरों से यहोवा घृणा करता है, और छल का तराजू अच्छा नहीं।
24मनुष्य का मार्ग यहोवा की ओर से ठहराया जाता है; मनुष्य अपना मार्ग कैसे समझ सकेगा*?
25जो मनुष्य बिना विचारे किसी वस्तु को पवित्र ठहराए, और जो मन्नत मानकर पूछपाछ करने लगे, वह फंदे में फंसेगा।
26बुद्धिमान राजा दुष्टों को फटकता है, और उन पर दाँवने का पहिया चलवाता है।
27मनुष्य की आत्मा यहोवा का दीपक है; वह मन की सब बातों की खोज करता है। (1 कुरिन्थियों. 2:11)
28राजा की रक्षा कृपा और सच्चाई के कारण होती है, और कृपा करने से उसकी गद्दी संभलती है।
29जवानों का गौरव उनका बल है, परन्तु बूढ़ों की शोभा उनके पक्के बाल हैं।

Read नीतिवचन 20नीतिवचन 20
Compare नीतिवचन 20:8-29नीतिवचन 20:8-29