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पवित्र बाइबिल - नीतिवचन - नीतिवचन 20

नीतिवचन 20:15-26

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15सोना और बहुत से बहुमूल्य रत्न तो हैं; परन्तु ज्ञान की बातें* अनमोल मणि ठहरी हैं।
16किसी अनजान के लिए जमानत देनेवाले के वस्त्र ले और पराए के प्रति जो उत्तरदायी हुआ है उससे बंधक की वस्तु ले रख।
17छल-कपट से प्राप्त रोटी मनुष्य को मीठी तो लगती है, परन्तु बाद में उसका मुँह कंकड़ों से भर जाता है।
18सब कल्पनाएँ सम्मति ही से स्थिर होती हैं; और युक्ति के साथ युद्ध करना चाहिये।
19जो लुतराई करता फिरता है वह भेद प्रगट करता है; इसलिए बकवादी से मेल जोल न रखना।
20जो अपने माता-पिता को कोसता, उसका दिया बुझ जाता, और घोर अंधकार हो जाता है।
21जो भाग पहले उतावली से मिलता है, अन्त में उस पर आशीष नहीं होती।
22मत कह, “मैं बुराई का बदला लूँगा;” वरन् यहोवा की बाट जोहता रह, वह तुझको छुड़ाएगा। (1 थिस्सलुनीकियों. 5:15)
23घटते बढ़ते बटखरों से यहोवा घृणा करता है, और छल का तराजू अच्छा नहीं।
24मनुष्य का मार्ग यहोवा की ओर से ठहराया जाता है; मनुष्य अपना मार्ग कैसे समझ सकेगा*?
25जो मनुष्य बिना विचारे किसी वस्तु को पवित्र ठहराए, और जो मन्नत मानकर पूछपाछ करने लगे, वह फंदे में फंसेगा।
26बुद्धिमान राजा दुष्टों को फटकता है, और उन पर दाँवने का पहिया चलवाता है।

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