1ऐ ज़बरदस्त, तू शरारत पर क्यूँ फ़ख़्र करता है? ख़ुदा की शफ़क़त हमेशा की है।
2तेरी ज़बान महज़ शरारत ईजाद करती है; ऐ दग़ाबाज़, वह तेज़ उस्तरे की तरह है।
3तू बदी को नेकी से ज़्यादा पसंद करता है, और झूट को सदाक़त की बात से।
4ऐ दग़ाबाज़ ज़बान! तू मुहलिक बातों को पसंद करती है।