3ऐ ख़ुदावन्द, इंसान क्या है कि तू उसे याद रख्खे? और आदमज़ाद क्या है कि तू उसका ख़याल करे?
4इंसान बुतलान की तरह है; उसके दिन ढलते साये की तरह हैं।
5ऐ ख़ुदावन्द, आसमानों को झुका कर उतर आ! पहाड़ों को छू, तो उनसे धुआँ उठेगा!
6बिजली गिराकर उनको तितर बितर कर दे, अपने तीर चलाकर उनको शिकस्त दे!
7ऊपर से हाथ बढ़ा, मुझे रिहाई दे और बड़े सैलाब, या'नी परदेसियों के हाथ से छुड़ा।