8उठ, ऐ ख़ुदावन्द! अपनी आरामगाह में दाखि़ल हो! तू और तेरी कु़दरत का संदूक़।
9तेरे काहिन सदाक़त से मुलब्बस हों, और तेरे पाक ख़ुशी के नारे मारें।
10अपने बन्दे दाऊद की ख़ातिर, अपने मम्सूह की दुआ ना — मन्जूर न कर।
11ख़ुदावन्द ने सच्चाई के साथ दाऊद से क़सम खाई है; वह उससे फिरने का नहीं:कि “मैं तेरी औलाद में से किसी को तेरे तख़्त पर बिठाऊँगा।
12अगर तेरे फ़र्ज़न्द मेरे 'अहद और मेरी शहादत पर, जो मैं उनको सिखाऊँगा 'अमल करें; तो उनके फ़र्ज़न्द भी हमेशा तेरे तख़्त पर बैठेगें।”
13क्यूँकि ख़ुदावन्द ने सिय्यून को चुना है, उसने उसे अपने घर के लिए पसन्द किया है:
14“यह हमेशा के लिए मेरी आरामगाह है; मै यहीं रहूँगा क्यूँकि मैंने इसे पसंद किया है।
15मैं इसके रिज़क़ में ख़ूब बरकत दूँगा; मैं इसके ग़रीबों को रोटी से सेर करूँगा